भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तिरवाळा तावड़ै रा / हरीश भादानी

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:26, 29 नवम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरीश भादानी |संग्रह=बाथां में भूग...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हूं .....कई
कोरो डूंगर
झाल्यौड़ौ खभौ
खेजड़ी.... जाळ......कै’ आक
कै तळैचैठी ज्यौ सिणियौ
तूं बे री बेल.............?

म्हारौ उघाड़ौ
पळपळतौ हेमांणी काळजो देखतांई
सूरज री लाडैसर किरन्यां
उतरै करै रमझोळ
दूर सूं देखै काच
कैवता जावै....
वो रैयौ पांणी रौ छळावौ.........
पांणी कठै है अठै
चौखूंट पड़ियौ है
सूकौ सून्याड़
बरसां-बरसां
बादळ री लीरी तक रो नीं पासंग...........
सांचा काचां री देखी-कैयी
पण दीठ नै दीसै
सूकै सरणाट में
जागती बैठौ
तावड़ियौ साच
कै,बादळ रै बसू नीं रैयी
म्हारी जंूण
देखतौ आयौ है सूरज बाप
म्हारा,हां म्हारा कमतर
धर मजलां, धर कूचां
दिनूगै-सिझ्यां
जा पूगै पाताळ
भरलै बारे में
खळ-खळ नांखदै देगां में
आडा आयोड़ा
काच उतारै दीठ
म्हारै पणीढ़ै
कांसी री थाळी
म्हारी आंख्यां में झांकै तौ दीसै
नीलम आभौ
आभै पसरयौड़ी हरियल बेलां
बेलां में पांणी
पांणी सूं तिरिया-मिरिया
म्हारी हेमांणी जूंण