भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इन पड़ावों से / गुलाब सिंह

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:27, 6 जनवरी 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब सिंह |संग्रह=बाँस-वन और बाँ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इन पड़ावों से उबरना
और बढ़ना,
कुएँ की दीवार चढ़ना।

हाथ-पाँवों से सटी काई
जल सतह पर
थरथराती
मौन परछाईं,

देह साधे झुके रहना
या सँभल कर
झूलती घासें पकड़ना।

आ रही आवाज़
सूरज चाँद तारे
दूर हमसे हैं मगर-
हैं तो हमारे,

जब न पृथ्वी सच रही
या बच रही
चाहिए आकाश गढ़ना।

जिन्दगी के शब्द अर्थों से
कटी बारह खड़ी,
स्याह पट्टी पर समय की
सहमती आँखें गड़ीं,

खींचकर के कान
हर दिन पूछता है-
क्या लिखा है, अबे पढ़ ना?