गाँधी बाबा के बिना / वंशीधर शुक्ल
हमरे देसवा की मँझरिया ह्वैगै सूनि,
अकेले गाँधी बाबा के बिना।
कौनु डाटि के पेट लगावै, कौनु सुनावै बात नई,
कौनु बिपति माँ देय सहारा, कौनु चलावै राह नई,
को झँझा माँ डटै अकेले, बिना सस्त्र संग्राम करै,
को सब संकट बिथा झेलि, दुसमन का कामु तमाम करै।
सत्य अहिंसा की उजेरिया ह्वैगै सूनि,
अकेले गाँधी बाबा के बिना।
अँगरेजी सासन के हटतै, आई नई विपति भारी,
तब अकेलि जिमिदारी डाहै, अब डाहै सब अँधियारी,
तब चाँदी ताँबे का सिक्का, अब कागज की भरमारी,
तब भुँइ बनी रहै साखिन की, अब अधिवासी भँइधारी।
हमरी आसा की डगरिया ह्वैगै सूनि,
अकेले गाँधी बाबा के बिना।
तब तौ पर्वत की मड़इन माँ, होइ न चोरी बटमारी,
अब सहरन मा कठिन जिंदगी, गली गली ठगई भारी,
डाकू लोफर खूँगर बाढ़े, सबै दिसा भै अँधियारी,
न्याय इमान सत्यता उड़िगै, जीवन जन्म भवा भारी।
सिगरी दुनिया लागै नीरसि धुँवारि,
अकेले गाँधी बाबा के बिना।
अकिले बाबा के उठतै खन, जानौ भारत भा खाली,
सबके भीतर संका ब्यापी, जनु धरि डहुँकी कंगाली,
कोई न्याय न बिपति सुनैया, डगमग नैया भारत की,
चारिउ वार अराजकता है, लूट फूँक स्वारथ रत की।
जानौ परिगै सारे साँसन मा भँगारि,
अकेले गाँधी बाबा के बिना।
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