भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जलयान पर / अनातोली परपरा

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:26, 1 दिसम्बर 2007 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: अनातोली पारपरा  » संग्रह: माँ की मीठी आवाज़
»  जलयान पर


रात है

दूर कहीं पर झलक रही है रोशनी

हवा की थरथराती हँसी मेरे साथ है

दाएँ-बाएँ-ऊपर-नीचे चारों ओर अंधेरा है

हाथ को सूझता न हाथ है

कितनी हसीन रात है


रात है

चांद-तारों विहीन आकाश है ऊपर

अदीप्त-आभाहीन गगन का माथ है

और मैं अकेला खड़ा हूँ डेक पर

नीचे भयानक लहरों का प्रबल आघात है

कितनी मायावी रात है


रात है

गहन इस निविड़ में मुझे कर रही विभासित

वल्लभा कांत-कामिनी स्मार्त है

माँ-पिता, मित्र-बन्धु मन में बसे

कुहिमा का झर रहा प्रपात है

यह अमावस्या की रात है