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अभी भी बचे हैं / मदन कश्यप

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अभी भी बचे हैं
कुछ आख़िरी बेचैन शब्द
जिनसे शुरु की जा सकती है कविता

बची हुई हैं
कुछ उष्ण साँसे
जहाँ से सम्भव हो सकता है जीवन

गर्म राख़ कुरेदो
तो मिल जाएगी वह अन्तिम चिंगारी
जिससे सुलगाई जा सकती है फिर से आग ।