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मींझर (कविता) / कन्हैया लाल सेठिया

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सौनेली मींझर लड़ालूम
रस पीवै भंवरा झूमझूम
सौनेली मींझर लड़ालूम।

सै मन मिलणै री बातां है
कुण कीं रै हाथां बाथां है ?
बा अलगोजै री गूंज उठी
सुण बिछड्यां हियां अमूझ उठी,

आंख्यां में सुपनां नाच गया
कर छननछून कर छननछून,
सौनेली मींझर लड़ालूम
सौनेली मींझर लड़ालूम।

दिन मधरा, मदवी रातां है
अै सुख बैरी री घातां है,
मन मौजां में तण उणमादी
नैणां ने दारू कुण प्यादी ?

कंठा रै मीठैे गीतां री
आभै में माची धमकधूम,
सौनेली मींझर लड़ालूम
सौनेली मींझर लड़ालूम।

फुलड़ां री झिलमिल पांतां है,
ज्यों रंगा भरी परातां है,
धरती रो रूप सुआ पंखी
तीतर री टोळ्यां उड़ किलखी,

बो बवै बायरो मद झीणो
धोरां रा गोरा गाल चूम,
सौनेली मींझर लड़ालूम
सौनेली मींझर लड़ालूम।