भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इतिहास में पन्ना धाय / प्रियदर्शन

Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:23, 2 सितम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रियदर्शन |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatK...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं शायद तब सोया हुआ था
जब तुम मुझे अपनी बांहों में उठा कर
राजकुमार की शय्या तक ले गई मां,
हो सकता है, नींद के बीच यह विचलन
इस आश्वस्ति में फिर से नींद का हिस्सा हो गया हो
कि मैं अपनी मां की गोद में हूं
लेकिन क्या उस क्षणांश से भी छोटी, लेकिन बेहद गहरी यातना में
जिसमें हैरत और तकलीफ दोनों शामिल रही होगी,
क्या मेरा बदन छटपटाया होगा,
क्या मेरी खुली आंखों ने हमेशा के लिए बंद होने के पहले
तब तुम्हें खोजा होगा मां
जब बनवीर ने मुझे उदय सिंह समझ कर अपनी तलवार का शिकार बना डाला?

पन्ना धाय,
ठीक है कि तब तुम एक साम्राज्य की रक्षा में जुटी थी,
अपने नमक का फर्ज और कर्ज अदा कर रही थी
तुमने ठीक ही समझा कि एक राजकुमार के आगे
तुम्हारे साधारण से बेटे की जान की कोई कीमत नहीं है
मुझे तुमसे कोई शिकायत भी नहीं है मां
लेकिन पांच सौ साल की दूरी से भी यह सवाल मुझे मथता है
कि आखिर फैसले की उस घड़ी में तुमने
क्या सोच कर अपने बेटे की जगह राजकुमार को बचाने का फैसला किया?
यह तय है कि तुम्हारे भीतर इतिहास बनने या बनाने की महत्त्वाकांक्षा नहीं रही होगी
यह भी स्पष्ट है कि तुम्हें राजनीति के दांव पेचों का पहले से पता होता
तो शायद तुम कुछ पहले राजकुमार को बचाने का कुछ इंतज़ाम कर पाती
और शायद मुझे शहीद होना नहीं पड़ता।

लेकिन क्या यह संशय बिल्कुल निरर्थक है मां
कि उदय सिंह तुम्हें मुझसे ज़्यादा प्यारे रहे होंगे?
वरना जिस चित्तौ़ड़गढ़ का अतीत, वर्तमान और भविष्य तय करते
तलवारों की गूंज के बीच तुम्हारी भूमिका सिर्फ इतनी थी
कि एक राजकुमार की ज़रूरतें तुम समय पर पूरी कर दो,
वहां तुमने अपने बेटे को दांव पर क्यों लगाया?

या यह पहले भी होता रहा होगा मां,
जब तुमने मेरा समय, मेरा दूध, मेरा अधिकार छीन कर
बार-बार उदय सिंह को दिया होगा
और धीरे-धीरे तुम उदय सिंह की मां हो गई होगी?
कहीं न कहीं इस उम्मीद और आश्वस्ति से लैस
कि राजवंश तुम्हें इसके लिए पुरस्कृत करेगा?

और पन्ना धाय, वाकई इतिहास ने तुम्हें पुरस्कृत किया,
तुम्हारे कीर्तिलेख तुम्हारे त्याग का उल्लेख करते अघाते नहीं
जबकि उस मासूम बच्चे का ज़िक्र
कहीं नहीं मिलता
जिसे उससे पूछा बिना राजकुमार की वेदी पर सुला दिया गया।

हो सकता है, मेरी शिकायत से ओछेपन की बू आती हो मां
आखिर अपनी ममता को मार कर एक साम्राज्य की रक्षा के तुम्हारे फैसले पर
इतिहास अब भी ताली बजाता है
और तुम्हें देश और साम्राज्य के प्रति वफा़दारी की मिसाल की तरह पेश किया जाता है
अगर उस एक लम्हे में तुम कमज़ोर पड़ गई होती
तो क्या उदय सिंह बचते, क्या राणा प्रताप होते
और
क्या चित्तौड़ का वह गौरवशाली इतिहास होता जिसका एक हिस्सा तुम भी हो?

लेकिन यह सब नहीं होता तो क्या होता मां?
हो सकता है चित्तौड़ के इतिहास ने कोई और दिशा ली होती?
हो सकता है, वर्षों बाद कोई और बनवीर को मारता
और
इतिहास को अपने ढंग से आकार देता?
हो सकता है, तब जो होता, वह ज्यादा गौरवपूर्ण होता
और नया भी,
इस लिहाज से कहीं ज्यादा मानवीय
कि उसमें एक मासूम बेख़बर बच्चे का खून शामिल नहीं होता?

इतिहास का चक्का बहुत बड़ा होता है मां
हम सब इस भ्रम में जीते हैं
कि उसे अपने ढंग से मोड़ रहे हैं
लेकिन असल में वह हमें अपने ढंग से मोड़ रहा होता है
वरना पांच सौ साल पुराना सामंती वफ़ादारी का चलन
पांच हजार साल पुरानी उस मनुष्यता पर भारी नहीं पड़ता
जिसमें एक बच्चा अपनी मां की गोद को दुनिया की सबसे सुरक्षित
जगह समझता है
और बिस्तर बदले जाने पर भी सोया रहता है।

दरअसल इतिहास ने मुझे मारने से पहले तुम्हें मार डाला मां
मैं जानता हूं जो तलवार मेरे कोमल शरीर में बेरोकटोक धंसती चली गई,
उसने पहले तुम्हारा सीना चीर दिया होगा
और मेरी तरह तुम्हारी भी चीख हलक में अटक कर रह गई होगी
यानी हम दोनों मारे गए,
बच गया बस उदय सिंह, नए नगर बसाने के लिए, नया इतिहास बनाने के लिए
बच गई बस पन्ना धाय इतिहास की मूर्ति बनने के लिए।