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सुअर (दो) / उदय प्रकाश

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एक ऊंची इमारत से बिलकुल तड़के एक तन्दरुस्त सुअर निकला और मगरमच्छ जैसी कार में बैठ कर शहर की ओर चला गया


शहर में जलसा था फ्लैश चमके जै- जै हुई कॉफी - बिस्कुट बंटे मालाएँ उछलीं


अगली सुबह सुअर अखबार में मुस्करा रहा था उसने कहा था

हम विकास कर रहे हैं 


उसी रात शहर से चीनी और मिट्टी का तेल ग़ायब थे ।