भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गुरिल्ला / अनिल जनविजय

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:17, 9 दिसम्बर 2009 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम्हारे खेत उनके पास हैं
चुप रहो
तुम्हारे खेत जोते जा रहे हैं
जोतने दो
उनमें बीज़ डाले जा रहे हैं
डालने दो
अंकुर फूट गए हैं
देखते रहो
फसल बढ़ रही है
इन्तज़ार करो
फसल पक गई है
हथियार तेज़ करो
फसल कट रही है
तैयार हो जाओ
फसल गाड़ी पर लाद दी गई है
कूद पड़ो, वार करो
उनकी लाशें बिछा दो
यह फसल तुम्हारी है
तुम्हारे खेत की
अब ये खेत भी तुम्हारे हैं।