भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सृजन के जीन / किरण मिश्रा

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:31, 13 अप्रैल 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=किरण मिश्रा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्रेम की भाषा, अपनत्व के छन्द
सुकून के पल,
मैंने जमा कर के रख लिए है

ये सोच कर
तकनीकी के बाज़ार में इनकी जरूरत किसे
आने वाला कल एण्टी-एजिंग साइंस का है

ये में रख जाऊँगी उन पीढ़ियों के लिए जो
आधे मशीन बने असन्तुष्ट अवसाद में घिरे
खोज रहे होंगे सन्तुष्टि और सृजन के जीन को