भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आम के पत्ते (कविता) / रामदरश मिश्र
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:57, 14 मई 2010 का अवतरण
वह जवान आदमी
बहुत उत्साह के साथ पार्क में आया
एक पेड़ की बहुत सारी पत्तियाँ तोड़ीं
और जाते हुए मुझसे टकरा गया
पूछा-
अंकल जी, ये आम के पत्ते हैं न
नहीं बेटे, ये आम के पत्ते नहीं हैं
कहाँ मिलेंगे पूजा के लिए चाहिए
इधर तो कहीं नहीं मिलेंगे
हाँ, पास के किसी गाँव में चले जाओ
वह पत्ते फेंककर चला गया
मैं सोचने लगा-
अब हमारी सांस्कृतिक वस्तुएँ
वस्तुएँ न रह कर
जड़ धार्मिक प्रतीक बन गई हैं
जो हमारे पूजा-पाठ में तो हैं
किन्तु हमारी पहचान से गायब हो रही हैं।