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निशागीत / राजकमल चौधरी
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खिड़कीसँ नीचाँ ससरि क’
इजोरिया
पसरि गेल अछि
हरसिंगारक झमटगर छाहरिमे
केवाड़क दोगमे नुका रहल अछि
हमरे कोनो कविताक
एकटा नवीन पाँती
जेना हँसइत हो खिल-खिल हमरे दुलारि कन्या
एहि जाड़मे बन्हने गाँती
आब जँ निन्न नहि भेल
जीवन भरि
जागल रहि जाएब
जीवन भरी
एहि झमटगर छाहरिक प्रत्याशामे
लागल रहि जाएब
जागल रहि जाएब।