भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कागद अर रिस्ता / संजय पुरोहित
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:12, 28 नवम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजय पुरोहित |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}<poem>र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
रिस्ता भी हुवै
फ़गत कागदी
ऊजळै गाभा में
हारता जूण री चाल
बगत री थापां सूं
काळ रै धमीड़ां सूं
हुय जावै बदरंग
अंतस में छापै
अनै लागै दरकण
कागद अर रिस्ता
एक टिल्लो फगत
बाढ देवै अर कर देवै मून
कीं नीं रैवै लारै
पड़्या रैवै दोन्यूं
ऊंचै अटाळै में
बगत रै अटाळै
जठै दोन्यां रो
कीं नीं हुवै
अरथ अर मनोरथ।