भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कमाल की औरतें २५ / शैलजा पाठक
Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:47, 20 दिसम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शैलजा पाठक |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
तुम्हारे पास हर रंग
का पिंजरा है
रंगीन वादे हैं
कटोरी में धरा पानी
छलकता सा है
मैं चूकना नहीं चाहती
मेरे पास एक ज़िन्दगी है
मैं अपनी उड़ान नील आकाश तक
आजमाना चाहती हूं
खाली पिंजरा हवा के साथ गोल-गोल
घूम रहा है
तुम्हारा अहंकार मथ रहा है
खुले पंखों सा स्वप्न समंदर की
सबसे बड़ी लहर पर सवारी करने लगा।