भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अपने तड़पने की / मीर तक़ी 'मीर'
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:27, 6 अगस्त 2008 का अवतरण
अपने तड़पने की मैं तदबीर पहले कर लूँ
तब फ़िक्र मैं करूँगा ज़ख़्मों को भी रफू का
यह ऐश के नहीं हैं या रंग और कुछ है
हर गुल है इस चमन में साग़र भरा लहू का
बुलबुल ग़ज़ल सराई, आगे हमारे मत कर
सब हमसे सीखते हैं, अंदाज़ गुफ़्तगू का