भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फिर जल गया रावण / मनोज चौहान
Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:04, 1 मार्च 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार= {{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार= मनोज चौहान }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
{{KKRachna | रचनाकार=
फिर जल गया है रावण
हर बार की तरह
फूटते पटाखों के शोर
और तालियों की
गड़गड़ाहट के बीच l
बहन के अपमान का
प्रतिशोध लेने को
जो कर बैठा दुसाहस
माता सीता के हरण का
मगर मर्यादित रहा
फिर भी
कायम रह पाई थी
वैदेही की पवित्रता l
लेकिन क्या सच में
इतना क्रूर था वह
जितने निर्मम
और विकृत मानसिकता के
गुलाम हैं ये
कलयुगी रावण l
मासूम बच्चियों को नोचते
तो कभी निर्दोष और अबोध
बचपन को
पेट्रोल छिड़ककर
आग लगा देने वाले
आततायी
या फिर मनुष्य रूप में
भूलवश जन्मे पशु ?
उदंड और अभिमानी
उस रावण का
अंत तो हो गया था
बहुत पहले
दंड स्वरुप
मगर कब अवतरित होंगे
इन कलयुगी रावणों को
संहारने वाले राम ?