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खतरे में है बचपन / जयप्रकाश मानस
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तितली-जैसे दिन को नोच-नोच कर फेंक दिया गया है रद्दी काग़ज की तरह
काले राक्षस ने दबोच लिया है नर्म-नाज़ुक सपनों को गमकने से पहले ज्यों चंदा को राहू
हरे-भरे पाठों वाली किताबें लूटी जा चुकी हैं तानाशाह से विदेशी आक्रमणकारी की भाँति अधखिंची रेखाओं वाले हाथों में
चहकते गुड्डे-गुड़ियों को तब्दील कर दिया है लालची जादूगर ने माचिस बारूद पत्थर में
ऐसे में क्या बचेगा दिन को फेंके जाने के बाद क्या बचेगा सपनों को दबोच लिए जाने के बाद आखिर क्या बचेगा किताबों को लूट लिये जाने के बाद दुनिया में माचिस बारूद और पत्थर के सिवा
सावधान खतरे में है बचपन कभी भी नेस्तनाबूद हो सकता है समूचा जीवन