गूँज / क्रिस्टीना रोजेटी
आना मेरे पास तुम जब पसरा हो रात का सन्नाटा; आना मेरे पास तुम सपने के शोर गुल में लिपटे मौन में, आना मेरे पास तुम गुनगुने गालों और, जीवन से भरी चमकदार आंखों को लिए; आना मेरे पास वापस आँसुओं के भीगेपन में, ओ बीते बरस की याद, उम्मीद और प्यार............
ओ मधुर स्वप्न, अन्तहीन खट्टे मीठे मधुर स्वप्न, हाँ, जिसे जागना चाहिए था उस स्वर्ग के आगोश में, जहाँ प्यार की राह चलती आत्माएँ मंज़िल पाकर, हो जाती हैं एकाकार; टकटकी लगाए प्यासी आकुल आँखें वहाँ देखती हैं, उन धीमे से खुलते द्वारों को, जो खुलता है, समेटता है, और फिर सहेज लेता है, कभी न बाहर आने के लिए.
फिर भी आओ मेरे सपनों में, जिससे मैं रह सकँ ज़िन्दा, इस मृतप्राय ठण्डी निस्तब्ध ज़िन्दगी में मैं खुद को कह सकूँ जिन्दा, आओ मेरे पास सपनों में ही, जिससे मैं दे तो सकूँ, धड़कन को धड़कन, साँस को साँस धीमे से ही सही बोल तो सकूँ, थोड़ा सा चल सकूँ, झुक सकूँ, जैसा कुछ समय पहले करती थी, मेरे प्यार, जैसा कुछ समय पहले चलती थी, पर न जाने कितने समय पहले....
Come to me in the silence of the night; Come in the speaking silence of a dream; Come with soft rounded cheeks and eyes as bright As sunlight on a stream; Come back in tears, O memory, hope, love of finished years. O dream how sweet, too sweet, too bitter sweet, Whose wakening should have been in Paradise, Where souls brimfull of love abide and meet; Where thirsting longing eyes Watch the slow door That opening, letting in, lets out no more. Yet come to me in dreams, that I may live My very life again though cold in death: Come back to me in dreams, that I may give Pulse for pulse, breath for breath: Speak low, lean low As long ago, my love, how long ago.