भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नहीं आएगा झाँसे में भारत / प्रदीपशुक्ल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:05, 1 सितम्बर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रदीप शुक्ल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
नहीं आएगा
झाँसे में
भारत अब बेईमान के
लगता है
गर्दिश में तारे
आए पाकिस्तान के !!
बस लेकर हम गए अमन की
तुमको गले लगाया
हमने सोचा
प्यार से तुमको
जीतेंगे हम भाया
करगिल में
पर दिखा दिया
तुम चच्चा हो शैतान के !
हमने तुमको साथ बैठ कर
बिरयानी खिलवाई
काट के सर
मेरे वीरों का
तुमने की रुसवाई
जाने क्यों
हम नहीं ले सके
बदले सब अपमान के !
गलती की जो हमने
छब्बिस ग्यारह भुला दिया
हमें क्षोभ
हमनें क्यों उसका
बदला नहीं लिया
उसी समय
टुकड़े, टुकड़े
करने थे पाकिस्तान के !
भूल नहीं करना प्यारे
अब बदल गई सरकार
सीधी-सीधी
बात करो
या हो जाओ तैयार
ख़्वाबों में
कश्मीर जो आया
लाले पड़ेंगे जान के !
नहीं आएगा
झाँसे में
भारत अब बेईमान के
लगता है
गर्दिश में तारे
आए पाकिस्तान के !!