भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आगे बढ़े चलेंगे / रामनरेश त्रिपाठी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:43, 7 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामनरेश त्रिपाठी }} <poem> यदि रक्त बूँ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यदि रक्त बूँद भर भी होगा कहीं बदन में
नस एक भी फड़कती होगी समस्त तन में ।
यदि एक भी रहेगी बाक़ी तरंग मन में ।
हर एक साँस पर हम आगे बढ़े चलेंगे ।
वह लक्ष्य सामने है पीछे नहीं टलेंगे ।।

मंज़िल बहुत बड़ी है पर शाम ढल रही है ।
सरिता मुसीबतों की आग उबल रही है ।
तूफ़ान उठ रहा है, प्रलयाग्नि जल रही है ।
हम प्राण होम देंगे, हँसते हुए जलेंगे ।
पीछे नहीं टलेंगे, आगे बढ़े चलेंगे ।।

अचरज नहीं कि साथी भग जाएँ छोड़ भय में ।
घबराएँ क्यों, खड़े हैं भगवान जो हृदय में ।
धुन ध्यान में धँसी है, विश्वास है विजय में ।
बस और चाहिए क्या, दम एकदम न लेंगे ।
जब तक पहुँच न लेंगे, आगे बढ़े चलेंगे ।।