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अंधेरों के दरख़्त / रति सक्सेना

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परछाइयों के बीज़ कुछ इस तरह बिख़र गए पिछवाड़े

कि खड़े हो गए रातो-रात अंधेरों के दरख़्त फूल खिले फिर फल टपक पड़े बीज़ फट

दरख़्तों से उगे पहाड़ पहाड़ों से परछाइयाँ पौ फटनी थी कि छा गया अंधेरा पूरी तरह।