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दोहा दशक / कैलाश झा ‘किंकर’

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अंग क्षेत्र के अंगिका, भाषाई पहचान।
उपभाषा सें हिन्द मेॅ, हिन्दी के उत्थान।।

मातृभाषा करै न छै, हिन्दी सेॅ तकरार।
भरतें रहलै आज तक हिन्दी के भंडार।।

नकली हिन्दी-दां मगर, व्यर्थ व्यथित नाराज।
अवधी, मगही, अंगिका सब हिन्दी के साज।।

अंग देश के कर्ज ते, भारत के अभिमान।
विक्रमशीला विश्व केॅ, देतेॅ रहलै ज्ञान।।

कहलगाँव मेॅ अवतरित, नामी ऋषि कहोल।
जिनका नै वितैषणा, बोली रहै अमोल।।

गंगा पाप निवारिणी, गिरी मंदार ललाट।
महासती बिहुला यहाँ, अजगैवी के ठाठ।।

कुरुक्षेत्र रोॅ कर्ण के, रहै राज ई अंग।
इन्द्र भिखारी कर्ण से, कवच पाय के दंग।।

कात्यायन, कुवीतक ऋषि, अंग-धरा वरदान।
अस्टावक्र, कहोल-सुत, ज्ञानी गुणी महान।।

सीता कंुड नहाय केॅ, पूजो चंडी थान।
अद्भुत महिमा अंग के, पुरथौं हर अरमान।।

अंगधात्री देवी यहाँ, चम्पा शक्ति-पीठ।
पौराणिक छै मान्यता, जानै गुरु वशिष्ठ।।