भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बरसाती रात सावन की / रामनरेश पाठक
Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:26, 2 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामनरेश पाठक |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बरसाती रात सावन की
अभी आधी न बीती है
गगन के पास जब आँखें
पता तेरा गयीं लेने
लगे तब मुस्कुरा कर तुम
पता आना स्वयं देने
पिघलती बात सावन की
अभी सिहरी न बीती है
गली में बादलों को जब
भटकते देख मन सिहरा
गए तुम और छिप मुझसे
अधर का गीत तब बिखरा
कसकती बात सावन की
अभी विधवा न बीती है
कहीं कजरी, कहीं मल्हार
मन को हैं व्यथा देते
हवा के हर झकोरे
क्षीण बाती को कंपा देते
दहकती मोह की वरुणा
अभी करुणा न रोती है
बरसाती रात सावन की
अभी आधी न बीती है