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रउआ खाए के ना लूर बा / विजेन्द्र अनिल

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रउआ खाए के ना लूर बा, जिआन करीला
संउसे देसवा के काहे, परेसान करींला?

करिया पइसा के बूता प दोकान खोलिके
रउआ कंठी लेके राम के ध्यान करींला

जेकर खूनवा पसेनवा बहेला हरदम,
काहे जिनिगी के गाड़ी ओकर जाम करींला?

रउवा साहेबन के सोझवा डोलाई पोंछिया
अपना कबजा में फैक्टरी-खदान करींला

अपना छंवड़ा के देबे खातिर गद्दी सोगहग
संउसे देसवा के निनिआं हराम करींला

रउरा बीवी के मजार प त ताज बनेला
हमरा मउगी के दिने में नीलाम करींला
          
रचनाकाल : 14 फरवरी 1978