भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दिवाली रात पंछी / कुमार सौरभ
Kavita Kosh से
Kumar saurabh (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:52, 11 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार सौरभ |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> घो...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
घोंसले दीये नहीं जलाते
कितना तो सुंदर है अमावस
गृहदाह से
यह हस्तक्षेप क्यों?
अप्रत्याशित रोशनी
रंगीनियाँ
शहर भर शोर
आँखें
सीमान्त के खाली गाँव
फेफड़े में भूकम्प
बेचारे, रात भर पंछी !