सरस्वती बंदना / अवधेश्वर अरुण
रोटी जीवन सत्य कि एकरा से तन-परान बचइअ
भुक्खे रहला पर भगवानो के न भजन अबइअ
रोटी जीवन सत्य कि एकरा ला सब मारा-मारी
छन में अप्पन करे पराया रोटी की लाचारी
रोटी ला ब्याकुल आदमी होइअ पत्थर की जांता
पल में पीस मेटा देइअ इ अपनापन के नाता
खाली पेट अनर्थ करइअ भला पर अकरइअ
रोटी के महिमा आदमी गिरगिट सन रंग बदलइअ
पनसोखा सपना मनमोहक पनसोखा सुन्दरता
पनसोखा आनंद से तु, तोरे तन-मन के जरता
सतरंगा खूँटी जे पर जग टाँगे दुःख आ सोक
पथराएल जीबन के देइअ ई नूतन आलोक
एकरा सुन्दरता से नीला नभ सतरंग बनइअ
कविता के सुन्दरता के ई संजीवन बनइअ
रुक्खल सुक्खल रोटी ला ई हए नवनीत प्रसंग
रोटी में संगीत भरइअ पनसोखा के रंग
रोटी जीवन के जथार्थ पनसोखा मानस लोक
पनसोखा से जुर रोटी बन जाइअ अमर असोक
भाओ बिना रोटी के दुनिआ महज रेत के सागर
रोटी रोटी के टकराहट रोके में पटु नागर
पनसोखा के रस में रोटी डूब सरस हो जाइअ
रोटी के दरपन में सुख के मोहक चित्र मिलइअ
पनसोखा के डोरी से मनीमाला रोटी बनइअ
जीवन में सहजे तब मंगल बंदरवार सजइअ
ए लेल रोटी-पनसोखा दुन्नो हम्मर अभिलासा
पूरन रोटी पनसोखा से जीवन के परिभासा