भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
म्हारे आलीजा री चंग / राजस्थानी
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:29, 12 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: म्हारे आलीजा री चंग, बाजै अलगौजा रे संग, <br> फागण आयो रे ! <br><br> रूंख-रूंख री न...)
म्हारे आलीजा री चंग, बाजै अलगौजा रे संग,
फागण आयो रे !
रूंख-रूंख री नूंवी कूपळा, गीत मिलण रा अब गावै।
बन-बागां म काळा भंवरा, कळी-कळी ने हरसावै।
गूंझै ढोलक ताल मृदंग, बाजे आलीजा री चंग।।
फागण आयो रे !
आज बणी हर नारी राधा, नर बणिया है आज किसन।
रंग प्रीत रो एडो बिखर्यो, गली-गली है बिंदराबन।
हिवडै-हिवडै उठे तरंग, बाजे आलीजा री चंग।।
फागण आयो रे !