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दोहा सप्तक-02 / रंजना वर्मा
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राजकुंवर की कल्पना, स्वप्नों के शत रंग।
सच्चाई बनते न ये, फिर भी करते दंग।।
सिहरन का सुख दे गयी, शीतल मन्द समीर।
जैसे मन में प्यार की, कसक गयी हो पीर।।
टला नहीं निज पन्थ से, हुआ नहीं गतिमान।
पी अंजुरी भर चांदनी, तारा हुआ महान।।
आँखों में आशा किरन, साँस साँस मधुगन्ध।
हाथों में गंगाजली, लिखती प्रणय प्रबन्ध।।
चुटकी भर सिंदूर ने, ऐसा रचा वितान।
रोम रोम झंकृत हुआ, फूटा जीवन गान।।
पीली सरसों सी हुई, पीली पीली देह।
क्या मैं करूँ बसन्त का, पिया नहीं जब गेह।।
चन्दन सा तन गन्ध मय, आँचल बसी सुवास।
रंग महल सी देह में, नैना करें प्रकाश।।