भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गंध / विनय सौरभ
Kavita Kosh से
Kumar mukul (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:53, 4 अक्टूबर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= विनय सौरभ |संग्रह= }} {{KKCatK avita}} <poem> (संद...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
{{KKCatK avita}}
(संदीप नाईक के लिए)
_______________________
पुरानी किताबों की गंध की तरह
बसी है तुम्हारी याद
किताबें जो हमने पैदल चलकर
पैसे बचाते हुए खरीदीं
किताबें जो हमें प्रिय थीं
और जो हमें उपहार में मिलीं
और कुछ फुटपाथ पर
विस्मित कर देने वाली तारीख़ों
और हस्ताक्षरों से भरी हुईं
धूसर हो गयी शीशम की आलमारी में
बरसों से जतन से रखी गयीं
जिन्हें झाड़-पोंछ कर आता रहा हूँ
जीवन के लंबे और अपरिचित रास्तों पर
स्मृतियों को बचाता हुआ
समय की धूल से !
किताबों पर अपने नाम
शहर और तारीख़ लिखने की याद बाक़ी है
गोकि हमें अभी और शहर बदलने थे !
अभी भी शामिल हो तुम
एक ऐसी ही याद में !