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वक़्त मिले तो / बुद्धिनाथ मिश्र

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वक़्त मिले तो ख़ूब लगाना
सुरमा आँखों में
पहले नाड़ा ठीक करो
खुलते पाजामे का

कितना था उत्साह
कि तुम जब रथ पर आओगे
सूरज जैसे अग-जग को
रोशन कर जाओगे
जैसे जैसे कलई खुलती
जाती है फन की
घटता जाता है लोगो में
शौक डरामे का

उन सबने तो मिलकर बस
जागीरें ही बाँटीं
तुमने पढ़कर मन्त्र
जेब से गर्दन तक काटी
वादा था, काला धन
जन के नाम जमा होगा
खोल दिया घर-घर में
तुमने खाता नामे का

सुबह-सुबह ही पाँव
लगे उठने बहके-बहके
राजधर्म के घर में
वेश्या राजनीति चहके
सोचा तुमने, क्या होंगे
वे साँचे सपनीले
लोकतन्त्र ख़ुद शक़्ल ले रहा
जब हंगामे का