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सम्बन्धीजन / विजयशंकर चतुर्वेदी

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मेरी आँखें हैं माँ जैसी

हाथ पिता जैसे

चेहरा-मोहरा मिलता होगा जरूर कुटुंब के किसी आदमी से।


हो सकता है मिलता हो दुनिया के पहले आदमी से

मेरे उठने-बैठने का ढंग

बोलने-बतियाने में हो उन्हीं में से किसी एक का रंग

बहुत सम्भव है मैं होऊँ उनका अंश

जिन्होंने देखे हों दुनिया को सुंदर बनाने के सपने

क्या पता गुफ़ाओं से पहले-पहल निकलने वाले रहे हों मेरे अपने

या फिर पुरखे रहे हों जगद्गुरू शिल्पी

गढ़ गए हों दुनिया भर के मंदिरों में मूर्तियाँ

उकेर गए हों भित्ति-चित्र

कौन जाने कोई पुरखा मुझ तक पहुंचा रहा हो ऋचाएँ

और धुन रहा हो सिर


निश्चित ही मैं सुरक्षित बीज हूँ

सदियों से दबा धरती में

सुनता आया हूँ सिर पर गड़गडाते हल

और लड़ाकू विमानों का गर्जन


यह समय है मेरे उगने का

मैं उगूंगा और दुनिया को धरती के किस्सों से भर दूंगा

मैं उनका वंशज हूँ जिन्होनें चराई भेड़ें

और लहलहा दिए मैदान

सम्भव है कि मैं हमलावरों का कोई होऊँ

कोई धागा जुड़ता दिख सकता है आक्रांताओं से

पर मैं हाथ तक नहीं लगाऊंगा चीज़ों को नष्ट करने के लिए

भस्म करने की निगाह से देखूंगा नहीं कुछ भी

मेरी आँखें हैं माँ जैसी

हाथ पिता जैसे।