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यादें और भूलना / अरुणा राय

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कुछ बूंदें टपका....
हल्‍की हो गयी........
कि
कुछ हुआ ही ना हो......
फिर कुछ सुना..........
फिर याद किया किसी को............
पर नहीं आए आंसू
फिर
गुजर गयी रात भी
गहरी नींद थी
स्‍वप्‍नहीन
सुबह जगी
तरोताजा
किताबें पढीं.............
नहीं
अब यादें शेष नहीं
वाह - जादू हो गया आज
मुक्‍त हो गयी वह तो...........

फिर बैठ गयी कुर्सी पर
तभी दूर आकाश में
यूकेलिप्‍टस हिले
कि जाने कहां से फिर
छाने लगी धूंध
और छाती चली गयी...