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कोॅन चूक भइलै / ब्रह्मदेव कुमार

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कोॅन चूक भइलै हो रामा, बितलोॅ जनमियाँ हो रामा।
आ होॅ रामा, अनपढ़ता के दुख मनोॅ में सालै छै रे की।।

कŸोॅ रे जतन सेॅ पईलाँ, मनुखोॅ के कोखिया हा रामा।
आ होॅ रामा, सेहो रे जनम लागै बेरथ भइलै रे की।।

नाहिं हम्में पढ़लां रे लिखलां, नाहिं हम्मेॅ ज्ञान रे पैलां।
आ हो रामा, अज्ञान के अन्हरिया में कलपै परान रे की।।

सुनै छियै आबी रे गेलै, साक्षरता अभियनमां हो।
आ हो रामा, अनपढ़ लोगोॅ केॅ जें पढ़ाबै छै रे की।।

तेजि देबै आबेॅ जे हम्मेॅ, लाजोॅ रे शरम हो रामा।
आ हो रामा, साक्षरता-केन्द्र के धरबै ठिकान रे की।।

चलूँ सखी, चलूँ गे बहिना, ज्ञान दीप के रोशनी में।
आ हो रामा, ठोरोॅ सेॅ फूटतै आबेॅ मुस्कान रे की।।