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मन सेॅ पढ़ोॅ / ब्रह्मदेव कुमार

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मन सेॅ पढ़ोॅ किताब हो भैया, मन सेॅ पढ़ोॅ।
कहाँ सेॅ मिललै लिखै लेॅ सिलौठ हो
आरोॅ पढ़ै लेॅ किताब हो।

कौनें सिखाबै लिखै-पढ़ै लेॅ
आरो मीट्ठोॅ-मीट्ठोॅ बात हो।।

साक्षरता केन्द्र सेॅ मिललै, लिखै लेॅ हमरा सिलौठ हो
भैया हो, पढ़ै लेॅ हमरा किताब हो।
एमटी, भीटी पढ़ै-लिखै लेॅ, आरो सिखाबै मिट्ठोॅ बात हो।।

‘क’ से करमा, ‘ग’ से गैया, ‘ब’ से बकरी बताबै।
रूपया-पैसा जोड़ी-तोड़ी, हिसाब करै लेॅ सिखाबै।।

जिनगी के अंधियारा हो भैया, पढ़ी-लिखी दूर भगैयोॅ।
पाठ के सीख सीखी केॅ भैया, सुन्दर भविष्य बनैयोॅ।।

भैया, मैया आरो बहिनियाँ, मिली-जुली करै किलोल।
पढ़ी-लिखी केॅ अचरज करै, साक्षरता के जय बोल।।