धनकुल का सुर / पूनम वासम
तुम्हारे लौट आने मात्र से लौट आएगा
गाँव का पुराना तालाब
हंसने लगेगा महुए का पेड़
तिरडुडडी भी अपना मौन व्रत तोड़कर
एक साथ छनक उठेंगी ।
तुम लौटोगे तो लौट आएँगी पोलई की खुशियाँ
एक बार फिर धोरई बाँधेगा बैलों को गोठान में
जेठा और चुई पहनाकर
तुम्हें पता है न कि सिंगोटी देखना शुभ माना जाता है ।
धनकुल का सुर लग ही नहीं रहा
तुम्हारी उँगलियों के छुवन के बिना ।
सारे देवी -देवताओं का जी उकता गया है तुम्हारे इन्तज़ार में
चौपाल का सूनापन झेलते-झेलते नीम का पेड़ बुढ़ा रहा है ।
उसके झुर्रीदार तने,
तुम्हारी खोई हुई हंसी के दानों को
स्मृति-चिन्ह के स्तम्भ में एक-एक कर चिपका रहे हैं
खलिहान को मस-डाँड से घेरने के बाद भी वहाँ
दुख की पकी फ़सल का ढेर लगने लगा है ।
पान -टुटानी का काम अधूरा है ।
देव- डँगई का रंग भी फीका है एक तुम्हारे न होने से
‘नाँगर धरला भीम, पानी देला इन्दर’
वाली कहावत में जान फूँकने वाले तुम अन्तिम कड़ी हो ।
मुझे यक़ीन है कि तुम आओगे लौटकर
जंगल की अन्धेरी छाँव वाली गुफ़ा के सारे
तिलस्म तोड़कर
तुम भेजोगें एक दिन अपने ‘बाबा ‘ को मेरे घर
फूल खोंचने
तुम्हे यह जानकर ताज्जुब होगा
कि आज भी पूरा गाँव मरमी पाटा गाने के लिए उत्सुक है
सिर्फ़ तुम्हारे लिए ।
कि तुम्हारे लौट आने की ख़बर मात्र से
लौट आएँगी कैलेण्डर की सारी बीती तारीख़ें ।