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जीवन से लबरेज़ हिमालय जैसे थे पुरज़ोर पिता / सोनरूपा विशाल

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जीवन से लबरेज़ हिमालय जैसे थे पुरज़ोर पिता
मैं उनसे जन्मी नदिया हूँ मेरे दोनों छोर पिता

प्रश्नों के हल,ख़ुशियों के पल, सारे घर का सम्बल थे,
हर रिश्ते को बांधने वाली थे इक अनुपम डोर पिता

जीवन के हर तौर तरीक़े, जीवन की हर सच्चाई
सिखलाया करते थे हम पर रखकर अपना जोर पिता

जब हम बच्चों की नादानी माँ से संभल न पाती थी
तब हम पर गरजे बरसे थे बादल से घनघोर पिता

सब कुछ है जीवन में लेकिन एक तुम्हारे जाने से
रात सरीखी ही लगती है मुझको अब हर भोर पिता

रोज़ कई किरदार जिया करते थे पूरी शिद्दत से
कभी झील की ख़ामोशी थे कभी सिंधु का शोर पिता