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कवि ‘निराला’ के प्रति / महेन्द्र भटनागर

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नवीन भावना व कल्पना-प्रसूत काव्य के प्रवीण अग्रदूत तुम !
प्रवाह-धार-सी उठान गीत की कि निर्विवाद शक्ति की प्रतीक एक-एक पंक्ति,
एक-एक शब्द !
हो कहीं बड़े उदार मधु बहार मय ग़ज़ल बटोर गा रहे मधुर स्वतंत्रा कोकिला सदृश !
कहीं-कहीं बड़े कठोर घोर वज्रपात-से सशक्त गीत गा रहे !

जगा मनुज जिन्हें विलोक शोक-भाव,
आत्मग्लानि से उठा !
चरण नवीन-काव्य के चले नयी डगर ; खुले नये अधर,
मिले नये विचार,
मुग्ध जग निहार !
पा अमोल फूल-बोल मुग्ध काव्य-वाटिका !

प्रणाम लो !
अमर कला-जनक,
समस्त जन-समाज का प्रणाम लो !