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गंध अनाम / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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182
गंध अनाम
दे जाती चुपके से
तेरा पैग़ाम।
183
प्राणों में घुले
अलग करूँ कैसे
तुम्हारा नाम ।
184
टूटा घोंसला
न तोड़ चिड़िया का
आँधी हौसला।
185
पूजा के मन्त्र
बदल नहीं पाए
छल का तन्त्र।
186
कभी तो मिलो
सागर में मिलतीं
सरिता जैसे।