भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नारी (दोहे) / गरिमा सक्सेना

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:46, 30 मार्च 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गरिमा सक्सेना |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सृष्टि नहीं नारी बिना, यही जगत आधार।
नारी के हर रूप की, महिमा बड़ी अपार।।

जिस घर में होता नहीं ,नारी का सम्मान।
देवी पूजन व्यर्थ है, व्यर्थ वहाँ सब दान।।

लक्ष्मी, दुर्गा, शारदा, सब नारी के रूप।
देवी सी गरिमा मिले, नारी जन्म अनूप।।

कठिन परिस्थिति में सदा, लेती खुद को ढाल।
नारी इक बहती नदी, जीवन करे निहाल।।

है सावित्री सी सती, बनती पति की ढाल।
पतिव्रत नारी सामने, घुटने टेके काल।।

नारी मूरत त्याग की, प्रेम दया की खान।
करना जीवन में सदा, नारी का सम्मान।।

सूना है नारी बिना, सारा यह संसार।
वह मकान को घर करे, देकर अपना प्यार।।

नारी तू अबला नहीं ,स्वयं शक्ति पहचान।
अपने हक को लड़ स्वयं, तब होगा उत्थान।।

क्यूं नारी लाचार है, लुटती क्यूं है लाज।
क्या पुरुषत्व विहीन ही, हुई धरा ये आज।।