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तुम बिन यह मौसम / रवीन्द्र भ्रमर

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तुम बिन !
यह मौसम कितना उदास लगता है —
तुम बिन !

घर पीछे तालाब
उगे हैं लाल कमल के ढेर
तुम आँखों में उग आई हो
प्रात गन्ध की बेर;

यह मौसम कितना उदास लगता है —
तुम बिन !

झर-झर हरसिंगार झरते हैं
पवन पुलक के भार
हार गूँथ लूँ, किन्तु
करूँ किस वेणी का शृँगार;

यह मौसम कितना उदास लगता है —
तुम बिन !