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ग्राउंड ज़ीरो / नोमान शौक़

Kavita Kosh से
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वहां भी होता है
एक रेगिस्तान
जहां किसी को दिखाई नहीं देती
उड़ती हुई रेत

वहां भी होता है
एक दर्द
जहां तलाश नहीं किये जा सकते
चोट के निशान

वहां भी होती है
एक रात
जहां जुर्म होता है
चांद की तरफ़ देखना भी

वहां भी होती है
एक रौशनी
जहां पाबंदी होती है
पतंगों के आत्मदाह पर

वहां भी होती है
एक दहशत
जहां अदब के साथ
क़ातिलों से इजाज़त मांगनी होती है
चीख़ने से पहले

वहां भी होता है
एक शोक
जहां मोमबत्तियां तक नहीं होतीं
मरने वालों की याद में जलने
या जलाने के लिए

वहां भी होता है
एक शून्य
जहां नहीं पहुंच पाते
टी. वी. के कैमरे।