भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पीड़ा से रिश्ता पक्का कर जाता है / जहीर कुरैशी

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 20:16, 24 सितम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार= जहीर कुरैशी }} <poem> पीड़ा से रिश्ता पक्का कर जात...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


पीड़ा से रिश्ता पक्का कर जाता है
जो आता है घाव हरा कर जाता है

तुम कविता में भी लिखते हो गद्य बहुत
वो लेखों तक में कविता कर जाता है

मैं भी उसके साथ कभी रो लेता हूँ
वह भी रोकर दिल हल्का कर जाता है

बादल से सूरज तो क्या लड़ पाएगा
हाँ, कुछ पल सिर पर साया कर जाता है

हम लोगों की खस्ता माली हालत पर
वह खाली – पीली चिंता कर जाता है

बाँट रहा है रोज बताशे बातों के
बातों से मुँह को मीठा कर जाता है

लोग सदा बूढ़े होने से डरते हैं
वक्त आदमी को बूढ़ा कर जाता है.