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एक टिम-टिम लौ / शशिकान्त गीते

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रात मावस की, अकेली
एक टिम-टिम लौ।

हवाएँ घात करती हैं
तिमिर के कान भरती हैं
जानती हैं पर-अकाजी
रोज़ फटती पौ।

झिलमिलाते आँख तारे
हैं अकेले ढेर सारे
भूल बैठे थी कभी ली
एकता की सौ।

सूर्य का अनुभव-कथन है
ज़िन्दगी केवल हवन है
जले हाथों देखिए
फिर-फिर मिलेगी जौ।