Last modified on 19 मई 2011, at 21:12

सुनो चारुशिला / नरेश सक्सेना

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:12, 19 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेश सक्सेना |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> '''01 फ़रवरी 2011 को द…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

01 फ़रवरी 2011 को दिवंगत पत्नी विजय के लिए

तुम अपनी दो आँखों से देखती हो एक दृश्य
दो हाथों से करती हो एक काम
दो पाँवों से
दो रास्तों पर नहीं एक ही पर चलती हो

सुनो चारुशिला !
एक रंग और एक रंग मिलकर एक ही रंग होता है
एक बादल और एक बादल मिलकर एक ही बादल होता है
एक नदी और एक नदी मिलकर एक ही नदी होती है

नदी नहीं होंगे हम
बादल नहीं होंगे हम
रंग नहीं होंगे तो फिर क्या होंगे
अच्छा ज़रा सोचकर बताओ
कि एक मैं और तुम मिलकर कितने हुए

क्या कोई बता सकता है
कि तुम्हारे बिन मेरी एक वसंत ऋतु
कितने फूलों से बन सकती है
और अगर तुम हो तो क्या मैं बना नहीं सकता
एक तारे से अपना आकाश