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वसीयत / अज्ञेय
Kavita Kosh से
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मेरी छाती पर हवाएं लिख जाती हैं महीन रेखाओं में अपनी वसीयत और फिर हवाओं के झोंकों ही वसीयतनामा उड़ाकर कहीं और ले जाते हैं।
बहकी हवाओ ! वसीयत करने से पहले हल्फ उठाना पड़ता है कि वसीयत करने वाले के होश-हवाश दुरूस्त हैं: और तुम्हें इसके लिए गवाह कौन मिलेगा मेरे ही सिवा ?
क्या मेरी गवाही तुम्हारी वसीयत से ज्यादा टिकाउू होगी ?