अवेर्नो / लुईज़ा ग्लुक / विनोद दास
अवेर्नो एक झील का नाम था, जो रोम में नेपल्स नगर से दस किलोमीटर दूर बनी हुई थी। यह झील बेहद ज़हरीली थी। उससे उठने वाली ज़हरीली गैसों के कारण कोई भी पक्षी उसे उड़कर पार नहीं कर पाता था। रोमवासी उसे मृत्युलोक का द्वार समझते थे।
तुम मर जाते हो
जब मर जाता है तुम्हारा ज़ज़्बा
तुम कर नहीं पाते हो इसका कोई उम्दा इस्तेमाल
तुम करते रहते हो कुछ न कुछ ऐसा
जिसके लिए नहीं है और कोई विकल्प
जब यह मैंने अपने बच्चों से कहा
उन्होंने नहीं दिया ध्यान
बूढ़े खूसट हैं — उन्होंने सोचा
ऐसा वे करते रहते हैं हमेशा
करते रहते हैं ऐसी चीज़ों पर बात
जिनको कोई देख नहीं सकता
जिनको छिपाने के लिए
ग़ायब हो रही हैं उनकी दिमाग़ की कोशिकाएँ
पुरनियों को सुनते हुए
वे मारते हैं एक दूसरे को आँख
उनके ज़ज़्बे को लेकर करते हैं बात
चूँकि अब कुर्सी के लिए याद नहीं आता उन्हें कोई लफ्ज़
अकेला होना भयावह है
मेरा मतलब अकेले रहने से नहीं है
अकेले का मतलब है जहाँ कोई तुमको नहीं सुनता
मैं कहना चाहता हूँ
मुझे कुर्सी के लिए लफ्ज़ याद है — लेकिन अब मुझे
इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है
यह सोचते हुए मैं जग गया
तुमको तैयार होना है
जल्द ही तुम्हारा ज़ज़्बा हार मान लेगा
फिर दुनिया की सभी कुर्सियाँ
तुम्हारी कोई मदद नहीं कर पाएँगी
अँग्रेज़ी से अनुवाद : विनोद दास
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|रचनाकार=लुईज़ा ग्लुक
|अनुवादक=ओम निश्चल
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आप ही देखिए कि वे कोई निर्णय नहीं ले सके
इसलिए यह स्वाभाविक ही था कि वे डूब जाते
पहले बर्फ़ उन्हें अन्दर ले गई
और फिर, उनके सभी सर्दियों, वाले ऊनी स्कार्फ़
उनके पीछे तैरते रहे उनके डूबने से लेकर
अन्त तक जब तक कि वे पूरी तरह शान्त नहीं हो गए
और तालाब ने उन्हें कई गुना गहरी पकड़ से ऊपर नहीं उठाया
लेकिन मौत उन्हें अलग अलग तरह से आनी चाहिए,
शुरुआत के इतना क़रीब ।
हालाँकि वे हमेशा से थे
दृष्टिहीन और भारहीन ।
इसलिए शेष सब स्वप्नमय था, दीपक,
टेबल और उनके शरीरों को ढँकने वाले अच्छे श्वेत वस्त्र भी
फिर भी वे उन नामों को सुनते रहे
जिन नामों से उन्हें पुकारा गया
तालाब पर फिसलते हुए जैसे :
तुम किसके इन्तज़ार में हो
घर आओ, घर आओ, खो जाओ
नीले और स्थायी जल में ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : ओम निश्चल
और लीजिए, अब पढ़िए अँग्रेज़ी में मूल कविता
Louise Glück