भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धूप / अज्ञेय
Kavita Kosh से
रजनी.भार्गव (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 06:42, 2 अक्टूबर 2008 का अवतरण
सूप-सूप भर
धूप-कनक
यह सूने नभ में गयी बिखर:
चौंधाया
बीन रहा है
उसे अकेला एक कुरर ।
अल्मोड़ा
५ जून १९५८