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मुर्गी कुड़कुड़ाई है / शलभ श्रीराम सिंह

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मुर्गी कुड़कुड़ाई है
सहेली मुर्गी से अपने जोड़े का चर्चा कर रही है शायद
शायद मन पसंद बाँके मुर्गे के लिए कोई पैगाम दे रही है वह
या फिर
आदमिओं की दुनिया में
बचे रहने की किसी कोशिश पर
मशविरा कर रही है भरोसेमंद सखी के साथ
की प्लेट में मसाले की खुशबू का हिस्सा बनना
अशुभ है मुर्गों के लिए
अशुभ है नाश्ते में मुर्गियों के अंडों का शामिल किया जाना

मुर्गी कुड़कड़ाई है
बिल्ली या बाज के कहीं बिलकुल पास होने का
संकेत है यह
नेवला भी हो सकता है वहाँ
साँप भी
दोनों साथ-साथ नहीं होंगे वहां
मुर्गी की आवाज़ के दायरे में
वहाँ केवल भय है
सतर्क भय केवल
अपनी बिरादरी और बच्चों को सावधान करता

मुर्गी कुड़कुड़ाई है
दाने छिड़के जा रहे हैं आस-पास
चज़ों को तालीम देने का वक़्त है यह मुर्गी के लिए
ज़िन्दगी और अनाज के सरोकार पर कुछ बोल रही है वह
मुर्गे के लिए हिदायत भी हो सकती है उसमें
कि चूजों का हिस्सा न खाए वह



रचनाकाल : 1991 विदिशा


शलभ श्रीराम सिंह की यह रचना उनकी निजी डायरी से कविता कोश को चित्रकार और हिन्दी के कवि कुँअर रवीन्द्र के सहयोग से प्राप्त हुई। शलभ जी मृत्यु से पहले अपनी डायरियाँ और रचनाएँ उन्हें सौंप गए थे।