भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उड़ान शेष है / कविता भट्ट
Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:23, 24 जनवरी 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कविता भट्ट |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कुछ ही डग भरे, अभी तो उड़ान शेष है।
प्रत्यक्ष युग ने देखा, अनुमान शेष है।
जो बहा चले संग में, तुम पवन निराली।
सुगन्धित समीर का वह अभियान शेष है।
रवि-रश्मि बाँध पाए, नहीं ऐसी गठरी।
सतरंगी इन्द्रधनुष का वितान शेष है।
सो ना सकोगे तुम भी, मैं न सो सकी तो।
अभी मेरा मानदेय,अनुदान शेष है।
संकल्पों की लेखनी अब नहीं थकेगी।
बंधन जो तोड़ दिए, विधि-विधान शेष है।