भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

परिशिष्ट / गाबेबा बेदरून / श्रीविलास सिंह

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:13, 17 फ़रवरी 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गाबेबा बेदरून |अनुवादक=श्रीविला...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अपने पुराने कमरे में मैं खोलती हूँ बक्से
और उड़ती है न छेड़े गए वर्षों की धूल
अपराह्न की रोशनी में। बचपन में हम लिखते थे

अपने नाम ऐसे धूल भरे फ़र्श पर। मैं पलटती हूँ
हाईस्कूल के रिपोर्ट कार्ड, बिसरी हुई
लाइब्रेरी की किताबें, पत्र जो अब फट रहे, गल रहे।

मेरा हाथ रुक जाता है एक लिफ़ाफ़े पर, जो सील किया हुआ था,
पर भेजा नहीं गया,
सामने की ओर, नाम है हमारे पड़ोसी का,
पीछे की ओर, मेरे परिवार के नाम के ऊपर, मैं डालती हूँ
एक उँगली फ़्लैप के भीतर और फाड़ कर खोल देती हूँ वर्ष
जो हैं भीतर, मैं पाती हूँ, एक दो दशक पुराने क्रिसमस कार्ड पर
एक सन्देश, पड़ोस के दर्जी के लिए, जो अब मर चुका है,
मेरे पिता की लिखावट में जो अब मर चुके हैं ।

कितने संक्षिप्त और अपरिवर्तनीय हैं हमारे काम,
लिखना और भूल जाना,
और वे पृष्ठ जो खुलते हैं उनसे ।
खोलते हुए एक पत्र जो नहीं है मेरे नाम
मैं करती हूँ आश्चर्य क्या मैं चुरा रहीं हूँ कोई उपहार,
अथवा पूरा कर रही हूँ एक छोटा और आवश्यक कर्मकाण्ड ।

धूल भरे कमरे में मैं लेती हूँ ज़ोर से उनके नाम
और रख देती हूँ कार्ड फिर से पुराने काग़ज़ों के बीच ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : श्रीविलास सिंह

लीजिए, अब यही कविता मूल अँग्रेज़ी में पढ़िए
           Gabeba Baderoon
                  Postscript

In my old bedroom I reach for boxes
and the dust of undisturbed years rises
in the afternoon light. As children we drew

our names on such powdery floors. I flick
through high school report cards, forgotten
library books, letters now tearing and flaking.

My hand pauses on an envelope, sealed but unsent.
On the front, the name of our neighbours,
on the back, above the name of my family, I slide
a finger under the flap and tear open the years.
Inside, I find, on a Christmas card two decades old,
a greeting to the tailor next door, who has since died,
in the writing of my father, who has since died.

How brief and irretrievable our actions,
the writing and the forgetting,
and the lives that unfolded from them.
Opening a letter not addressed to me,
I wonder if I am stealing a gift,
or completing a small, necessary ritual.

In the dusty room I say their names out loud
and place the card again among the old papers.